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शुक्रवार, 09 जून 2023
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गरियाबंद : विशेष लेख : परियाबाहरा गौठान बना मल्टी एक्टिविटी सेंटर

गरियाबंद 05 जनवरी 2023

गरियाबंद जिले में वन क्षेत्रों में मवेशियों के अनियंत्रित चराई के दबाव को कम करने के उद्देश्य से आवर्ती चराई योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इसी कड़ी में परियाबाहरा गौठान को वन विभाग द्वारा मल्टीएक्टीविटी सेंटर के रूप में विकसित की गई है।
  राज्य शासन की महत्वाकांक्षी योजना “नरूवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी“ अंतर्गत गरूवा (पालतू मवेशी) एक महत्वपूर्ण अंग है। वन क्षेत्रों के समीप रहने वाले पालतू स्थानीय मवेशी परंपरागत रूप से वन क्षेत्रों पर ही चराई के लिये निर्भर रहते हैं। वन अधिकार मान्यता अधिनियम 2005 के तहत् इन वन क्षेत्रों में सामुदायिक अधिकार के रूप में चारई का अधिकार भी ग्राम सभाओं को दिया गया है, जिससे इनको चराई हेतु वैधानिक अधिकार भी प्राप्त हुआ है। ऐसी स्थिति में मवेशियों की चराई को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन विभाग की आवर्ती चराई वानिकी प्रबंधन की एक महत्वपूर्ण परिकल्पना है, जिसका उद्देश्य वन क्षेत्रों में अनियंत्रित चराई के दबाव को रोकना तथा चराई हेतु एक काल खण्डवार क्षेत्र (चराई यूनिट) निर्धारित करना है। चराई हेतु कौन सा क्षेत्र किस अवधि के लिये खुला होगा, किस अवधि में बंद होगा, इसका निर्धारण भी किया गया है। ताकि आवर्ती चराई की अवधारणा फलीभूत हो सके एवं वन क्षेत्रों की प्राकतिक पुनरुत्पादन क्षमता में वद्धि होने के साथ मवेशियों को चराई की सुविधा उपलब्ध हो सके। परियाबाहरा गौठान से लगे वन क्षेत्र में आवर्ती चराई हेतु स्थानीय प्रजातियों के घास, बीज का रोपण कर चारा उत्पादन में वद्धि की गई है। इसी तरह जिन कृषि भूमि में धान की फसल लेने के पश्चात् कोई फसल नही ली जाती है, ऐसे खेतों का भी चराई के लिये उपयोग किये जाने हेतु ग्रामीणों को प्रेरित किया जा रहा है। ताकि वन क्षेत्र पर चराई का निर्भरता कम हो। ग्रामीणों को खेतों में पैरा एकत्र कर न जलाने हेतु एवं आवर्ती चराई केन्द्र में पैरादान करने हेतु प्रेरित किया गया है। इसके अलावा आवर्ती चराई केंद्रों में आय मूलक गतिविधियां बढ़ाकर ग्रामीणों के आर्थिक स्तर में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। परियाबाहरा में आदिवासी एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के 26 परिवार निवासरत् हैं। यहां पर 581.530 हेक्टर वनक्षेत्र को सामुदायिक वन संसाधन का अधिकार दिया गया है। आवर्ती चराई केन्द्र में 2.50 हेक्टर में पशु कैम्प एवं नियंत्रित चराई हेतु कुल 280 हेक्टेयर में चराई हेतु वन क्षेत्र उपलब्ध है, जिसको ए, बी, सी, एवं डी चार खण्ड में प्रत्येक 70 हेक्टर में विभाजित किया गया है। पशु कैम्प (गौठान) के चारो ओर फलदार पौधा तथा वनौषधि पौधा तिखुर, हल्दी, अदरक और कोचई कंद का रोपण किया गया है। यहां पर गोबर क्रय एवं जैविक खाद निर्माण, लघु वनोपज संग्रहण कार्य, मछली पालन कार्य, मुर्गा पालन कार्य किया जा रहा है। पशुओं के पानी पीने हेतु कोटना की व्यवस्था, गोबर क्रय शेड, जैविक खाद निर्माण टंकी एवं पशुओं के लिए सूखे चारा के रूप में पर्याप्त पैरा की व्यवस्था की गई है। गौठान में 778.80 क्विंटल गोबर क्रय किया गया है, जिससे 147 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया गया है। उक्त कार्य में गांव की मां बम्लेश्वरी महिला स्व सहायता समूह सक्रिय है। वर्मी कम्पोस्ट से अब तक समूह को 47 हजार 500 रूपये लाभ अर्जित हुई है। गौठान में मछली पालन हेतु भी शेड तैयार किया गया है, जिसमें 4000 नग तिलपिया मछली बीज डाला गया है। जिससे अनुमानित 1000 कि.ग्रा. का उत्पादन होना संभावित है। जिससे समूह को प्रति 6 माह में लगभग 30 हजार रूपये तक का लाभान्वित होने की संभावना है। महिला स्व सहायता समूह द्वारा यहां पर मुर्गा पालन केन्द्र में 300 नग देशी मुर्गा का पालन किया जा रहा है। जिससे अनुमानित 1 लाख रूपये के आमदनी समूह को होगी। महिला स्व सहायता समूह द्वारा गौठान से लगे भूमि में वनौषधि पौधा तिखुर, हल्दी, अदरक और कोचई कंद आदि की रोपण व इसकी बिक्री कर 1 लाख रूपये की आमदनी प्राप्त हुई है। ज्ञात हो कि गरियाबंद जिले का कुल 5822.860 वर्ग किलोमीटर भौगोलिक क्षेत्रफल है, जिसमें से 1430.470 वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्रफल स्थित है, जिले के कुल वनक्षेत्र का प्रतिशत 54.01 वन क्षेत्र होता है। इन वन क्षेत्रों के समीप रहने वाले कुल 698 ग्राम है व वनसीमा से 5 कि.मी. के भीतर स्थित ग्रामों का प्रतिशत 58.74 है। वनमण्डल के वन क्षेत्रों में मवेशियों के अनियंत्रित चराई के दबाव को कम करने के उद्ेश्य से आवर्ती चराई योजना का क्रियान्वयन वन विभाग द्वारा किया जा रहा है।  
क्रमांक - 934/सोरी